आज दोपहर खाना खाते हुए मुझसे मेरी छोटी बहन ने पूछा की भैया ये जो दाल, चावल और सब्जियाँ हम खाते हैं, ये कहाँ से आते हैं ? एक छोटी सी लडकी के इस सरल से प्रश्न ने २ क्षण के लिए तो मुझे भी सोच में डाल दिआ! फिर मैंने उसके सरल से प्रश्न का सरल और सटीक उत्तर दिया कि इन्हें किसान खेती करके उगाते हैं और बाज़ार में ला कर बेच देते हैं , जहाँ से हम जैसे लोग इन्हे खाते हैं और अपनी भूख मिटाते हैं ! मेरी बहन के लिए किसान भी नया शब्द था और फिर तो जैसे उसके सवालों कि झड़ी से लग गई ! मेरे लाख टालने पर भी वह ना मानी। और फिर बाल हट तो जग प्रसिद्ध है ! विवश होकर मुझे उसे साधारण भारतीय किसान की असाधारण कहानी सुननी पड़ी ।
"जय जवान, जय किसान!!! "
यह नारा सुनने में जितना जोशीला , जानदार और अच्छा लगता है , वास्तविकता में आज के समय में उतना ही खोखला और अर्थहीन हो चुका है। भारत जो विश्व के प्रमुख अन्नदाता में से एक है, वहाँ
किसानों का जीवन किसी संघर्ष अथवा युद्ध से कम नहीं। ऐसा संघर्षशील जीवन इतनी गरिमा और सच्चाई से केवल भारतीय किसान ही व्यतीत कर सकता है। नवीनीकरण और औद्योगीकरण के इस युग में हमारे शहरी जीवन ने गोली सी रफ़्तार पकड़ ली है परन्तु इस सब के बीच में हम ये क्यूँ भूल जाते हैं कि जो अन्न हम खाते है, वह उस किसान की देन है जो अपने पूरे जीवन में पुरुषार्थ और परिश्रम का चुनाव करता है , संघर्ष और कठिनाइयों को अपनाता है, सिर्फ इसलिए ताकि हम जैसे लोग खाना खा सकें। ऐसे निःस्वार्थी इंसान को खुद के लिए भी दो वक़्त की रोटी बहुत मुश्किल से नसीब होती है।
एक कृषक का जीवन कितना कठोर होता है , इस कड़वे सच से अधिकतर लोग अवगत नहीं हैं। चाहे वह दोपहर की चिलचिलाती धूप हो, या रूह को ठिठुरा देने वाली जाड़े की ठंड, या घोर वर्षा। एक कृषक निरंतर अथक परिश्रम करता है बिना इन सब बातों से विचलित हुए। किसान गाँव के साफ़ और खुले वातावरण मैं निवास करता है। उसकी वेश भूषा भी उसकी तरह सरल और सादगी भरी होती है। साल भर मेहनत करके वह एक या दो बार पैदावार उठाता है। पर किसान का जीवन और सुख तो जैसे बने ही आँख मिचोली खेलने के लिए हैं। पहले तो उससे पैदावार को सरकार को सस्ते दामों में बेचना पड़ता है। जो बचा खुचा पैसा होता है, उस में
भी सेठ और साहूकार अपने अपने हिस्से का क़र्ज़ हड़प लेते हैं। जो थोड़ा बहुत पैसा बचता है, उस से वह अगली पैदावार के लिए खाद और बीज खरीदता है और २ वक़्त की रोटी का बंदोबस्त करता है।
भारत सरकार के लाख़ दावों के बावजूद आज भी भारतीय किसान की स्थिति में बहुत कम सुधार हुआ है। सारी उम्र वह अपना जीवन तंगी और गरीबी में व्यतीत करता है। मुआवज़े या सहायता के रूप में मिलने वाली धन राशी का बहुत ही छोटा प्रतिशत उस तक पहुँचता है। बीच में ही अफसर, अधिकारी, सेठ और साहूकार ये पैसा हड़प जाते हैं।
आर्थिक आभाव, खाने पीने और अन्य जरूरतें पूरी न होने के कारण ही आज देश में
नित दिन सैंकड़ों किसान आत्महत्या करने पर विवश हो रहे हैं। इस समस्या ने बहुत ही जटिल और विकराल रूप धारण कर लिया है। इस समस्या का अगर जल्द ही कोई समाधान नहीं निकला गया तो भारत में शायद किसान भी विलुप्त हो जाएँ।
प्राकृतिक विपदाएं जैसे सूखा, बाढ़, समय पर वर्षा ना होना या आवश्कयता से कम या अधिक वर्षा होना कृषक की पीठ तोड़ देते हैं और साथ ही उसके रोज़गार को भी प्रभावित करते हैं। नयी और नवीन खेती के उपाय और विधि भारतीय किसान धीरे धीरे सीख रहे हैं।
परन्तु चिंता के विषय की बात यह है कि जिस तीव्रता से किसान आत्महत्या कर रहे हैं, खेती छोड़ कर दूसरे रोज़गार अपना रहे हैं, क्या आने वाले कुछ समय में भारत में इतने किसान बचेंगे भी की सबके खाने लायक पैदावार हो सके ?
गांधीजी किसान को
सेवा व परिश्रम की मूरत मानते थे।
अन्नदाता और सृष्टिपालक के नाम से उससे सम्भोदित करते थे। पर ना जाने आज वही किसान भीड़ के उन लाखों चेहरों में ना जाने कहाँ खो चुके।
भारतीय कृषक के लिए ये कहना उचित और पर्याप्त होगा कि उसका जन्म करमयोगी की तरह मिट्टी से अन्न रूपी रत्न उत्पन्न करने की साधना में रहता है तथा वह अपना पूरा जीवन इसी करमभूमि में बलिदान स्वरुप न्योछावर कर देता है ।
"कष्ट , पीड़ा और दुःख ही मेरा आराम है ...
सुख, समृद्धि , खुशहाली तो जैसे मेहमान है ...।
मेरी मातृभूमि , मेरी करमभूमि तो ये खेत खलिहान है ...
हाँ मेरा नाम भारतीय किसान है ...
मेरा नाम भारतीय किसान है ...।
बरसता है सूरज अनल , माटी भी भट्टी जैसी तपती है .…
चलता है मेरा हल सुबह शाम , अब तो थकान भी अपनी सी लगती है ....
पसीने और खून से लहूलुहान हूँ , अब तो इस धरती पर भी परिश्रम के निशान है ....
हाँ मेरा नाम भारतीय किसान है ...
मेरा नाम भारतीय किसान है ...।
पैदावार का पैसा साहूकार के पास है ....
भूख के मारे पूरा परिवार परेशान है ....
ना जाने किस लोभ से काम करते हम , लेते नहीं विश्राम हैं …
अब तो केवल मेरा बैल, मेरा हल मेरी शान है …
हाँ मेरा नाम भारतीय किसान है ...।
मेरा नाम भारतीय किसान है ...।
क्या धन , क्या जमापूंजी इसका ना मुझे कोई ज्ञान है …
बस २ समय का खाना मिल जाए अब तो यही एक अरमान है....
शहरों में बैठे नेताओं , अफसरों और बाबूओं को कहाँ हमारा ध्यान है ....
हाँ मेरा नाम भारतीय किसान है ...
मेरा नाम भारतीय किसान है ...। "